इंद्र भजन
इंद्रदेव की महिमा गाएँ,
करें कृपा, सुख बरसाएँ।
सिंहासन पर विराजे देव,
सदा करें भक्तों का सेव।
वर्षा से जग में हरियाली,
उनकी कृपा से खुशहाली।
इंद्र धनुष का सुंदर रंग,
सबको देता प्रेम संग।
हे इंद्रदेव, कृपा बरसाओ,
भक्तों की नैया पार लगाओ।
सभी पर हो दया तुम्हारी,
करो पूर्ण हर मनोकामना सारी।
गूंजे तेरी जय-जयकार,
इंद्रदेव हमारे पालनहार!
इंद्र भजन का अर्थ:
इंद्र भजन में भगवान इंद्र की महिमा का वर्णन किया गया है। इंद्रदेव भारतीय धर्म में देवताओं के राजा और वर्षा के देवता माने जाते हैं। उनका आशीर्वाद न केवल बारिश के रूप में धरती पर जीवन देता है, बल्कि सभी जीवों को सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करता है।
इस भजन के माध्यम से भक्त भगवान इंद्र से उनके कृपापूर्ण आशीर्वाद की प्रार्थना करते हैं।
- “इंद्रदेव की महिमा गाएँ, करें कृपा, सुख बरसाएँ” – यह पंक्ति इंद्रदेव की महिमा का गुणगान करती है और प्रार्थना करती है कि इंद्रदेव अपनी कृपा बरसाएँ, जिससे सभी को सुख और समृद्धि मिले।
- “सिंहासन पर विराजे देव, सदा करें भक्तों का सेव” – इंद्रदेव को सिंहासन पर प्रतिष्ठित देवता के रूप में दर्शाया गया है, जो हमेशा अपने भक्तों की सेवा करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं।
- “वर्षा से जग में हरियाली, उनकी कृपा से खुशहाली” – इंद्रदेव की कृपा से धरती पर वर्षा होती है, जो जीवन के लिए आवश्यक है और साथ ही यह खुशहाली और समृद्धि लाती है।
- “इंद्र धनुष का सुंदर रंग, सबको देता प्रेम संग” – इंद्र धनुष, जो इंद्रदेव के आशीर्वाद का प्रतीक है, उसकी सुंदरता और रंगों के माध्यम से भगवान का प्रेम सभी पर समान रूप से बरसता है।
- “हे इंद्रदेव, कृपा बरसाओ, भक्तों की नैया पार लगाओ” – यहाँ भक्त इंद्रदेव से अपनी प्रार्थना करते हैं कि वे उनकी सभी परेशानियों को दूर करके जीवन को सुखी और समृद्ध बनायें, जैसे किसी नाव को पार लगाना।
- “सभी पर हो दया तुम्हारी, करो पूर्ण हर मनोकामना सारी” – इस पंक्ति में भक्त भगवान इंद्र से यह प्रार्थना करते हैं कि उनकी दया सभी पर हो, और वे सभी की इच्छाओं को पूरा करें।
- “गूंजे तेरी जय-जयकार, इंद्रदेव हमारे पालनहार!” – भजन के अंत में भक्त भगवान इंद्र की जयकार करते हैं और उन्हें हमारे जीवन के पालनहार के रूप में सम्मान देते हैं।
यह भजन भगवान इंद्र की महानता को स्वीकार करता है और उनकी कृपा की प्रार्थना करता है, ताकि वे जीवन में सुख और समृद्धि लेकर आएं।
Meaning of the Bhajan (Chandra Mahima)
This bhajan depicts the glory of the moon (Chandra) and its coolness. The moon is shown as residing on Lord Shiva’s head, symbolizing divine light that removes darkness.
- “Chandra chamke gagan mein, sheetal kirne barsaye” – The moon shines brightly in the sky, spreading its cool and peaceful rays across the world. This coolness symbolizes the calmness and peace the moon brings to our minds and hearts.
- “Shiv ke mastak viraje, jyoti anant dikhaye” – The moon is depicted as residing on Lord Shiva’s head. This signifies the divinity and power of Shiva, and the moon is also a symbol of infinite light that eliminates ignorance and darkness.
- “Chandra se sheetalta aaye, man ko shanti de jaye” – The moon’s coolness not only refreshes the environment but also brings peace and tranquility to our minds. It symbolizes mental calmness and inner balance.
- “Karuna, prem, daya ka sandesh yeh laaye” – Through the moon, this bhajan carries a message of compassion, love, and kindness. It encourages us to practice gentleness and empathy in our lives.
- “Radha sang Krishna nihare, amrit ras barsaye” – The bhajan also connects the moon with Lord Krishna and Radha, symbolizing their divine union. Krishna and Radha are depicted as showering nectar-like love and devotion, representing divine grace and the bliss of devotion.
- “Bhakton ke man ko bhaye, andhyara mitaaye” – Finally, it is said that the moon enchants the hearts of devotees and dispels the darkness in their lives. It symbolizes that the moon’s light brings knowledge, hope, and progress into our lives.
पूजा विधि और पूजा सामग्री:
पूजा विधि:
- सर्वप्रथम स्वच्छता:
पूजा आरंभ करने से पहले, पूजा स्थल को स्वच्छ करें। साफ कपड़े पहनें और मन को शुद्ध करें। - पुजारी या स्वयं पूजा करने वाले व्यक्ति का आचार-विचार:
पूजा करते समय अपने मन, वचन और क्रिया को शुद्ध रखने का ध्यान रखें। पूजा को श्रद्धा और भक्ति के साथ करें। - दीपक जलाना:
पूजा स्थल पर दीपक या दीया रखें और उसे घी या तेल से जलाएं। दीपक का प्रतीक ज्ञान, प्रकाश और तात्त्विक शुद्धता होता है। - स्मरण और मंत्र जाप:
भगवान का नाम स्मरण करें और उनसे सच्चे दिल से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मंत्रों का उच्चारण करें। ध्यान रहे कि मंत्र का जाप शुद्धता और आस्था से किया जाए। - पानी का छिड़काव:
जल को स्वच्छ पात्र में रखें और उसे देवता की मूर्ति पर छिड़कें। यह एक शुद्धिकरण का तरीका है। - आहुति या अर्पण:
भगवान के सामने पुष्प, फल, मिठाई, और अन्य सामग्री अर्पित करें। - आरती:
पूजा के अंत में, भगवान के समक्ष दीपक या अगरबत्ती दिखाकर आरती करें। इसका उद्देश्य ईश्वर को प्रसन्न करना और उनके आशीर्वाद प्राप्त करना है। - प्रसाद वितरण:
पूजा के बाद, भगवान के प्रसाद को भक्तों में वितरित करें और उसे श्रद्धा से ग्रहण करें।
पूजा सामग्री:
- पुजा थाली:
पूजा सामग्री को रखने के लिए एक थाली या पात्र लें। - दीपक/दीया:
तेल का दीपक या घी का दीपक जलाने के लिए। - अगरबत्ती (धूप):
ईश्वर की उपस्थिति महसूस करने के लिए। - पानी:
देवता की मूर्ति पर जल अर्पित करने के लिए। - पुष्प (फूल):
भगवान को अर्पित करने के लिए ताजे फूल। - फल:
भगवान को अर्पित करने के लिए ताजे फल जैसे केले, सेब, नारियल आदि। - मिठाई:
भगवान को अर्पित करने के लिए मिठाई, विशेष रूप से लड्डू या कोई अन्य प्रसाद। - चंदन और कुमकुम:
तिलक करने के लिए। - संगीत (ढोलक/मजीरा):
पूजा में भजन या आरती के दौरान वादन सामग्री। - पट्टी/चादर:
भगवान की मूर्ति या चित्र के सामने चादर या पट्टी रखें। - संकलन (चावल, सिक्के):
पूजा में अर्पित करने के लिए चावल, सिक्के आदि। - पंखा (चमेली या पत्र):
भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनका आदर दिखाने के लिए।
पूजा विधि और सामग्री भिन्न-भिन्न पूजा के प्रकार के अनुसार थोड़ी बदल सकती है, लेकिन इन सामग्रियों का सामान्य उपयोग सभी पूजा विधियों में किया जाता है।