गोरखनाथ चालीसा एक आध्यात्मिक भजन है जो भगवान गुरु गोरखनाथ जी की महिमा और उनके चमत्कारी शक्तियों का वर्णन करता है। यह चालीसा भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है, जिससे वे आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में शांति और सफलता पा सकते हैं।
गुरु गोरखनाथ, योग और तपस्या के महान गुरु, नाथ संप्रदाय के संस्थापक माने जाते हैं। उन्हें एक दिव्य संत के रूप में पूजा जाता है, जो मानव जीवन के कल्याण के लिए कार्य करते हैं।
गोरखनाथ जी ने योग, ध्यान और आध्यात्मिक साधना के माध्यम से मानवता को आत्म-साक्षात्कार का मार्ग दिखाया। उनकी शिक्षाएँ सरल और गहन हैं, जो हर व्यक्ति के जीवन में सुधार और सकारात्मकता लाती हैं।
गोरखनाथ चालीसा पढ़ने से भक्तों को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:
दोहा-
गणपति गिरिजा पुत्र को, सिमरूँ बारम्बार।
हाथ जोड़ विनती करूँ, शारद नाम अधार।।
चौपाई-
जय जय जय गोरख अविनाशी, कृपा करो गुरुदेव प्रकाशी।
जय जय जय गोरख गुणज्ञानी, इच्छा रूप योगी वरदानी।।
अलख निरंजन तुम्हरो नामा, सदा करो भक्तन हित कामा।
नाम तुम्हारा जो कोई गावे, जन्म जन्म के दुःख नशावे।
जो कोई गोरक्ष नाम सुनावे, भूत पिशाच निकट नहीं आवे।
ज्ञान तुम्हारा योग से पावे, रूप तुम्हार लख्या ना जावे।
निराकार तुम हो निर्वाणी, महिमा तुम्हरी वेद बखानी।
घट घट के तुम अन्तर्यामी, सिद्ध चौरासी करें प्रणामी।
भस्म अङ्ग गले नाद विराजे, जटा सीस अति सुन्दर साजे।
तुम बिन देव और नहीं दूजा, देव मुनी जन करते पूजा।
चिदानन्द सन्तन हितकारी, मङ़्गल करे अमङ़्गल हारी।
पूरण ब्रह्म सकल घट वासी, गोरक्षनाथ सकल प्रकासी।
गोरक्ष गोरक्ष जो कोई ध्यावे, ब्रह्म रूप के दर्शन पावे।
शङ़्कर रूप धर डमरू बाजे, कानन कुण्डल सुन्दर साजे।
नित्यानन्द है नाम तुम्हारा, असुर मार भक्तन रखवारा।
अति विशाल है रूप तुम्हारा, सुर नर मुनि जन पावं न पारा।
दीन बन्धु दीनन हितकारी, हरो पाप हम शरण तुम्हारी।
योग युक्ति में हो प्रकाशा, सदा करो सन्तन तन वासा।
प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा, सिद्धि बढ़े अरु योग प्रचारा।
हठ हठ हठ गोरक्ष हठीले, मार मार वैरी के कीले।
चल चल चल गोरक्ष विकराला, दुश्मन मान करो बेहाला।
जय जय जय गोरक्ष अविनासी, अपने जन की हरो चौरासी।
अचल अगम हैं गोरक्ष योगी, सिद्धि देवो हरो रस भोगी।
काटो मार्ग यम की तुम आई, तुम बिन मेरा कौन सहाई।
अजर अमर है तुम्हरो देहा, सनकादिक सब जोहहिं नेहा।
कोटि न रवि सम तेज तुम्हारा, है प्रसिद्ध जगत उजियारा।
योगी लखें तुम्हारी माया, पार ब्रह्म से ध्यान लगाया।
ध्यान तुम्हारा जो कोई लावे, अष्ट सिद्धि नव निधि घर पावे।
शिव गोरक्ष है नाम तुम्हारा, पापी दुष्ट अधम को तारा।
अगम अगोचर निर्भय नाथा, सदा रहो सन्तन के साथा।
शङ़्कर रूप अवतार तुम्हारा, गोपीचन्द भर्तृहरि को तारा।
सुन लीजो गुरु अरज हमारी, कृपा सिन्धु योगी ब्रह्मचारी।
पूर्ण आस दास की कीजे, सेवक जान ज्ञान को दीजे।
पतित पावन अधम अधारा, तिनके हेतु तुम लेत अवतारा।
अलख निरंजन नाम तुम्हारा, अगम पंथ जिन योग प्रचारा।
जय जय जय गोरक्ष भगवाना, सदा करो भक्तन कल्याना।
जय जय जय गोरक्ष अविनाशी, सेवा करें सिद्ध चौरासी।
जो पढ़ही गोरक्ष चालीसा, होय सिद्ध साक्षी जगदीशा।
बारह पाठ पढ़े नित्य जोई, मनोकामना पूरण होई।
और श्रद्धा से रोट चढ़ावे, हाथ जोड़कर ध्यान लगावे।
दोहा –
सुने सुनावे प्रेमवश, पूजे अपने हाथ
मन इच्छा सब कामना, पूरे गोरक्षनाथ।
अगम अगोचर नाथ तुम, पारब्रह्म अवतार।
कानन कुण्डल सिर जटा, अंग विभूति अपार।
सिद्ध पुरुष योगेश्वरों, दो मुझको उपदेश।
हर समय सेवा करूँ, सुबह शाम आदेश।
—समाप्त—
गणपति और माता पार्वती के पुत्र का स्मरण करते हुए, कवि अपने हृदय में उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करता है और माँ सरस्वती का सहारा लेकर अपनी वाणी में कृपा की प्रार्थना करता है।
1-2: गोरखनाथ की जयकार करते हुए, उन्हें अविनाशी, प्रकाश फैलाने वाले, और वरदान देने वाले योगी के रूप में प्रशंसा की गई है।
3-4: उनका नाम लेना जन्म-जन्म के कष्टों को समाप्त करता है। जो गोरखनाथ का नाम गाते हैं, उनके जीवन में भय, भूत-प्रेत आदि नहीं आते।
5-6: गोरखनाथ ज्ञान और योग से प्राप्त होते हैं। उनका रूप अद्वितीय और अकल्पनीय है।
7-8: वे निराकार, निर्वाणी और वेदों में वर्णित महान सत्ता हैं। उनके ज्ञान से संपूर्ण संसार प्रकाशित होता है।
9-16: गोरखनाथ को देवताओं और संतों द्वारा पूजनीय बताया गया है। वे भक्तों की रक्षा करते हैं और पापों को हरते हैं। उनकी कृपा से हर असंभव कार्य संभव हो सकता है।
17-20: उनके योग और ध्यान से भक्त सिद्धियां और ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। उनकी महिमा अनंत है, और उनका प्रकाश ब्रह्मांड को प्रकाशित करता है।
21-24: भक्तों को प्रातःकाल उनका स्मरण करना चाहिए। इससे योग और भक्ति की वृद्धि होती है। गोरखनाथ वैरियों का नाश करते हैं और भक्तों को चौरासी के चक्र से मुक्त करते हैं।
25-28: गोरखनाथ का शरीर अमर है, और वे सनकादिक ऋषियों के द्वारा वंदित हैं। उनकी महिमा का अनुभव योगी ही कर सकते हैं।
29-32: जो भी उनका ध्यान करता है, उसे अष्ट सिद्धियां और नौ निधियां प्राप्त होती हैं। वे पापियों और अधमों का उद्धार करते हैं।
33-40: गोरखनाथ की कृपा से भक्तों के सभी दुःख दूर होते हैं। चालीसा पढ़ने से भक्त की हर मनोकामना पूरी होती है। गोरखनाथ अपनी कृपा से भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
गोरखनाथ को सुनने, गाने और उनकी पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। वे पारब्रह्म के अवतार हैं और अपने भक्तों को हमेशा सही मार्ग दिखाते हैं।
यह चालीसा गोरखनाथ की अनंत महिमा और उनकी कृपा का वर्णन करती है। इसे श्रद्धा और भक्ति से पढ़ने पर जीवन के कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।