जय कन्हैया लाल की
(भजन)
जय कन्हैया लाल की,
जय कन्हैया लाल की।
बज रहे हैं ढोल और ताशे,
जय कन्हैया लाल की।
श्याम सुंदरी की शोभा निराली,
मोहन मुरली वाला है।
जिसके दर्शन को तरसे सब,
वो गोकुल का रखवाला है।
जय कन्हैया लाल की,
जय कन्हैया लाल की।
मोर मुकुट सिर शोभित जिसके,
गले में बंसी बांधे।
नाच रहे हैं ग्वाल-बाल संग,
राधा संग मस्ती में रहते।
जय कन्हैया लाल की,
जय कन्हैया लाल की।
माखन चुराकर जो खाए,
गोपियों को खूब सताए।
रूठे को भी जो हंसाए,
ऐसे नंदलाल हमें भाए।
जय कन्हैया लाल की,
जय कन्हैया लाल की।
कृष्ण-नाम का गाओ कीर्तन,
दिल में बसे श्रीबंसीधर।
हर लेता वो हर दुःख-दर्द,
करो सदा उनका ही जप।
जय कन्हैया लाल की,
जय कन्हैया लाल की।
जय श्री कृष्ण! जय कन्हैया लाल की!
जय कन्हैया लाल की भजन का अर्थ:
यह भजन भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति और उनके अद्भुत स्वरूप का वर्णन करता है। इसमें उनके बाल रूप, लीलाओं और भक्तों पर कृपा का स्मरण किया गया है।
- जय कन्हैया लाल की, जय कन्हैया लाल की।
- यह भगवान श्रीकृष्ण की जयकार है, जो उनके अद्भुत रूप और लीलाओं को समर्पित है।
- बज रहे हैं ढोल और ताशे, जय कन्हैया लाल की।
- उनकी महिमा गाने के लिए ढोल और ताशे बजाए जा रहे हैं, जिससे वातावरण भक्तिमय हो गया है।
- श्याम सुंदरी की शोभा निराली, मोहन मुरली वाला है।
- भगवान श्रीकृष्ण के श्यामल (गहरे रंग) और सुंदर रूप का वर्णन किया गया है, जो मुरली (बांसुरी) बजाने वाले मोहन हैं।
- जिसके दर्शन को तरसे सब, वो गोकुल का रखवाला है।
- भगवान के दर्शन के लिए सभी भक्त तड़पते हैं, क्योंकि वे गोकुल के पालनकर्ता और रक्षक हैं।
- मोर मुकुट सिर शोभित जिसके, गले में बंसी बांधे।
- श्रीकृष्ण के सिर पर मोर मुकुट और गले में बांसुरी का उल्लेख किया गया है, जो उनकी दिव्यता को दर्शाता है।
- नाच रहे हैं ग्वाल-बाल संग, राधा संग मस्ती में रहते।
- भगवान ग्वाल-बाल (गाय चराने वाले बालक) और राधा जी के साथ आनंदित होकर नृत्य करते हैं।
- माखन चुराकर जो खाए, गोपियों को खूब सताए।
- श्रीकृष्ण की माखन चोरी और गोपियों के साथ उनकी शरारतों का वर्णन किया गया है।
- रूठे को भी जो हंसाए, ऐसे नंदलाल हमें भाए।
- वे नंदलाल (नंद बाबा के पुत्र) सभी को प्रसन्न करने वाले हैं और जो रूठे हों उन्हें भी खुश कर देते हैं।
- कृष्ण-नाम का गाओ कीर्तन, दिल में बसे श्रीबंसीधर।
- भगवान श्रीकृष्ण के नाम का कीर्तन करें और अपने हृदय में बंसीधर (बांसुरी धारण करने वाले) को बसाएं।
- हर लेता वो हर दुःख-दर्द, करो सदा उनका ही जप।
- भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों के सभी दुःख और दर्द हर लेते हैं। इसलिए, उनका नाम जपने की प्रेरणा दी गई है।
यह भजन भक्तों के लिए एक प्रेरणा है कि वे भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का स्मरण करें और उनकी महिमा का गान करते हुए अपने जीवन को भक्तिमय बनाएं। जय श्री कृष्ण!
Meaning of the Bhajan “Jai Kanhaiya Lal Ki”
This bhajan is a devotional hymn praising Lord Krishna, describing His divine form, playful nature, and the love and blessings He bestows upon His devotees.
- Jai Kanhaiya Lal Ki, Jai Kanhaiya Lal Ki.
- It is a chant glorifying Lord Krishna and celebrating His divine presence.
- Drums and cymbals are being played, Jai Kanhaiya Lal Ki.
- The joyous atmosphere is described, filled with the sound of drums and cymbals, as devotees sing Krishna’s praises.
- The beauty of Shyam Sundar is unparalleled, He is Mohan, the flute player.
- The unmatched beauty of Lord Krishna, known as Shyam Sundar (the dark and beautiful one), is highlighted along with His identity as the enchanting flute player.
- Everyone yearns for His darshan; He is the protector of Gokul.
- Lord Krishna is the guardian of Gokul, and devotees long for His divine vision.
- Peacock feather crown adorns His head; He carries a flute around His neck.
- This verse depicts Krishna’s iconic appearance with a peacock feather crown and a flute, signifying His divine charm.
- He dances with cowherd boys and enjoys with Radha.
- Krishna is portrayed joyfully dancing with His friends and sharing playful moments with Radha.
- He steals butter and playfully teases the Gopis.
- Lord Krishna’s mischievous acts, like stealing butter and teasing the Gopis (cowherd women), are lovingly remembered.
- He makes even the angry smile; such is the endearing Nandlal we adore.
- Krishna is so loving and charming that even the upset or angry cannot resist smiling in His presence.
- Sing Krishna’s name in devotion; let Shri Bansidhar reside in your heart.
- Devotees are encouraged to chant Krishna’s name and keep Him, the holder of the flute (Bansidhar), in their hearts.
- He takes away all pain and suffering; always chant His name.
- Krishna is believed to remove all sorrows and sufferings of His devotees, urging them to always remember Him.
This bhajan inspires devotion and a sense of joy by remembering Lord Krishna’s divine playfulness, beauty, and blessings. It motivates devotees to connect with Him through love, surrender, and constant remembrance. Jai Shri Krishna!
पूजा विधि (Puja Vidhi):
भगवान श्रीकृष्ण की पूजा को श्रद्धा और भक्ति से करने पर उनकी कृपा प्राप्त होती है। यहां सरल और प्रभावी पूजा विधि दी गई है:
- स्नान और शुद्धिकरण:
- प्रातः स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान को साफ करें और गंगाजल या स्वच्छ जल से पवित्र करें।
- पूजा स्थान की तैयारी:
- चौकी या पाट पर पीला या लाल कपड़ा बिछाएं।
- भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
- दीप प्रज्वलन:
- घी या तेल का दीपक जलाएं।
- अगरबत्ती या धूपबत्ती जलाकर वातावरण को सुगंधित करें।
- आवाहन और आचमन:
- श्रीकृष्ण का आवाहन करें (उन्हें पूजा में आमंत्रित करें)।
- स्वयं को शुद्ध करने के लिए आचमन (पवित्र जल का छिड़काव या सेवन) करें।
- अभिषेक करें:
- भगवान को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण) से स्नान कराएं।
- फिर गंगाजल से स्नान कराएं।
- श्रृंगार:
- भगवान को ताजे वस्त्र, चंदन, कुमकुम, और पुष्प माला पहनाएं।
- मोर पंख और माखन-मिश्री अर्पित करें।
- नैवेद्य अर्पण:
- भगवान को भोग लगाएं (माखन, मिश्री, फल, मिठाई, आदि)।
- भोग के बाद भगवान से प्रार्थना करें कि इसे प्रसाद रूप में स्वीकार करें।
- आरती:
- घी या कपूर का दीपक जलाकर आरती करें।
- घंटी बजाते हुए “जय कन्हैया लाल की” या अन्य आरती गाएं।
- प्रार्थना और ध्यान:
- भगवान के सामने प्रणाम करें और उनकी लीलाओं का स्मरण करें।
- अपने मन की प्रार्थना करें।
- प्रसाद वितरण:
- भोग को प्रसाद के रूप में सभी भक्तों में बांटें।
पूजा सामग्री (Puja Samagri):
- श्रीकृष्ण की मूर्ति या तस्वीर
- दीपक: घी या तेल का दीपक।
- गंगाजल: शुद्धिकरण के लिए।
- पंचामृत: दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर।
- वस्त्र और आभूषण: भगवान के लिए।
- चंदन, कुमकुम, और रोली: तिलक और श्रृंगार के लिए।
- पुष्प और माला: ताजे फूल।
- फल और मिठाई: नैवेद्य के लिए।
- माखन और मिश्री: श्रीकृष्ण के प्रिय भोग के लिए।
- अगरबत्ती और धूपबत्ती: सुगंध के लिए।
- घंटी: आरती के दौरान।
- आरती थाली: जिसमें दीपक, कपूर और अन्य सामग्री रखें।
- कपूर: आरती के लिए।
- चौकी या पाट: मूर्ति रखने के लिए।
यह विधि भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और आराधना के लिए सरल और प्रभावशाली है। इसे श्रद्धा और प्रेम के साथ करें। जय श्रीकृष्ण!