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भगवान श्रीकृष्ण की चालीसा : पूर्ण विवरण और भक्ति महत्व

श्री कृष्ण चालीसा

दोहा:
श्री राधे कृष्ण नाम की, महिमा अपरंपार।
कहां लगायें मन इसे, भज लो बारंबार॥

चौपाई:
जय यदुनंदन जय जगवंदन।
जय वासुदेव देव अरु चन्दन॥
जय यशोदा सुत नंद दुलारे।
जय प्रभु भक्तन दुख हरतारे॥

गोपी ह्रदय आनि तिहारो।
मुरली मनोहर रूप निहारो॥
श्याम सलोना रूप निराला।
राधा संग है खेलन वाला॥

जय गिरिधर जय गोवर्धन धारी।
माखनचोर गोप मन भोरी॥
नंद के आनंद बढाने वाले।
सुर मुनि मन मोहने वाले॥

भ्रमर सी चितवन प्यारी प्यारी।
कुंज बिहारी गिरिवर धारी॥
रुक्मिणी संग विराजत प्यारे।
कंस रथारि चाणूर संहारे॥

जय प्रभु धन्य वृंदावन माही।
भक्त निरंतर गुण गुन गाही॥
धन्य यमुना जल तरंगिनी।
जहां रमे हरि मधुर रसरंगिनी॥

जय प्रभु दशरथ नंदन।
हरि हर कृष्ण रुक्मिणी जीवन॥
भीम अर्जुन के साथी सखा।
हर लो अब प्रभु विपदा अति भयंकर॥

दोहा:
जय जय कृष्ण कन्हैया, वंदन तिहुं लोक।
जो यह चालीसा पढ़े, हरो संकट शोक॥

श्री कृष्ण चालीसा का अर्थ (हिंदी में) :

दोहा:
“श्री राधे कृष्ण नाम की, महिमा अपरंपार।
कहां लगायें मन इसे, भज लो बारंबार॥”
(अर्थ: श्री राधा और कृष्ण के नाम की महिमा अनंत है। हमारे मन को कहीं और लगाने के बजाय, इनका बार-बार स्मरण और भजन करें।)

चौपाई:

“जय यदुनंदन जय जगवंदन।
जय वासुदेव देव अरु चन्दन॥”
(अर्थ: यदुवंश के नंदन (कृष्ण) की जय हो, जिन्हें समस्त संसार वंदन करता है। वासुदेव और देवता समान पवित्र श्रीकृष्ण को प्रणाम।)

“जय यशोदा सुत नंद दुलारे।
जय प्रभु भक्तन दुख हरतारे॥”
(अर्थ: यशोदा के पुत्र और नंदलाल श्रीकृष्ण की जय हो, जो अपने भक्तों के सभी दुख हर लेते हैं।)

“गोपी ह्रदय आनि तिहारो।
मुरली मनोहर रूप निहारो॥”
(अर्थ: गोपियों का मन चुराने वाले और मुरली बजाकर सबका मन मोहने वाले श्रीकृष्ण का रूप कितना मनोहर है।)

“श्याम सलोना रूप निराला।
राधा संग है खेलन वाला॥”
(अर्थ: सांवले और सलोने रूप वाले श्रीकृष्ण का निराला स्वरूप है। वे राधा के साथ क्रीड़ा करने वाले हैं।)

“जय गिरिधर जय गोवर्धन धारी।
माखनचोर गोप मन भोरी॥”
(अर्थ: गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले श्रीकृष्ण की जय हो। माखन चुराने वाले और गोपियों का मन चुराने वाले की भी जय हो।)

“नंद के आनंद बढाने वाले।
सुर मुनि मन मोहने वाले॥”
(अर्थ: जो नंद बाबा के घर में आनंद बढ़ाने वाले हैं और देवताओं व ऋषियों के मन को भी मोह लेते हैं।)

“भ्रमर सी चितवन प्यारी प्यारी।
कुंज बिहारी गिरिवर धारी॥”
(अर्थ: श्रीकृष्ण की सुंदर भौंरे जैसी चितवन मन को लुभाने वाली है। वे कुंज बिहारी और गिरिवर धारी के नाम से प्रसिद्ध हैं।)

“रुक्मिणी संग विराजत प्यारे।
कंस रथारि चाणूर संहारे॥”
(अर्थ: जो रुक्मिणी के साथ विराजमान हैं, जिन्होंने कंस और चाणूर जैसे राक्षसों का वध किया।)

“जय प्रभु धन्य वृंदावन माही।
भक्त निरंतर गुण गुन गाही॥”
(अर्थ: धन्य है वह वृंदावन, जहां श्रीकृष्ण ने अपनी लीलाएं कीं। उनके भक्त निरंतर उनके गुणों का गान करते हैं।)

“धन्य यमुना जल तरंगिनी।
जहां रमे हरि मधुर रसरंगिनी॥”
(अर्थ: धन्य है यमुना नदी, जिसकी लहरों पर श्रीकृष्ण ने मधुर लीलाएं कीं और रास रचाया।)

“जय प्रभु दशरथ नंदन।
हरि हर कृष्ण रुक्मिणी जीवन॥”
(अर्थ: प्रभु श्रीराम और श्रीकृष्ण दोनों की जय हो, जो भक्तों के जीवन के आधार हैं।)

“भीम अर्जुन के साथी सखा।
हर लो अब प्रभु विपदा अति भयंकर॥”
(अर्थ: श्रीकृष्ण, जो महाभारत में भीम और अर्जुन के साथी-सखा रहे, कृपया हमारी कठिनाइयों को दूर करें।)

दोहा:
“जय जय कृष्ण कन्हैया, वंदन तिहुं लोक।
जो यह चालीसा पढ़े, हरो संकट शोक॥”
(अर्थ: सभी लोकों में वंदनीय श्रीकृष्ण की जय हो। जो इस चालीसा का पाठ करता है, उसके सभी कष्ट और दुख दूर हो जाते हैं।)

Meaning of Shri Krishna Chalisa in English :

Doha:
“Shri Radhe Krishna naam ki, mahima aparampar.
Kahan lagaye man ise, bhaj lo barambar.”
(Meaning: The glory of the name of Shri Radha and Krishna is infinite. Instead of attaching your mind elsewhere, immerse yourself in their devotion repeatedly.)

Chaupai:

“Jai Yadunandan Jai Jagvandhan.
Jai Vasudev Dev aru Chandan.”
(Meaning: Glory to Shri Krishna, the son of the Yadu dynasty, who is revered by the entire world. Salutations to Vasudev’s son, the sacred and divine Shri Krishna.)

“Jai Yashoda Sut Nand Dulare.
Jai Prabhu Bhaktan Dukh Hartare.”
(Meaning: Glory to Shri Krishna, the son of Yashoda and beloved of Nand. Glory to the Lord who removes the sorrows of his devotees.)

“Gopi hriday aani tiharo.
Murli Manohar roop niharo.”
(Meaning: Shri Krishna captivates the hearts of the Gopis. His enchanting form with a flute mesmerizes everyone.)

“Shyam Salona roop nirala.
Radha sang hai khelan wala.”
(Meaning: Krishna’s dark and charming form is unique. He lovingly plays with Radha.)

“Jai Giridhar Jai Govardhan Dhari.
Makhan chor gop man bhori.”
(Meaning: Glory to Shri Krishna, the lifter of Govardhan Hill. He is the butter thief who captivates the hearts of the Gopis.)

“Nand ke anand badhane wale.
Sur muni man mohne wale.”
(Meaning: Krishna, who brought immense joy to Nand Baba’s house, also enchants the hearts of sages and gods.)

“Bhramar si chitvan pyari pyari.
Kunj Bihari Girivar Dhari.”
(Meaning: Shri Krishna’s lovely gaze is like that of a black bee. He is known as Kunj Bihari and the lifter of Mount Govardhan.)

“Rukmini sang virajat pyare.
Kans rathari Chanur sanhare.”
(Meaning: With Rukmini by his side, Shri Krishna appears divine. He destroyed Kansa and Chanur, the evildoers.)

“Jai Prabhu Dhanya Vrindavan maahi.
Bhakt nirantar gun gun gaahi.”
(Meaning: Glory to Lord Krishna! Blessed is Vrindavan where he performed his divine pastimes. His devotees constantly sing his praises.)

“Dhanya Yamuna jal tarangini.
Jahan rame Hari madhur ras rangini.”
(Meaning: Blessed is the Yamuna River, whose waters ripple beautifully. It is where Shri Krishna performed his sweet and joyous pastimes.)

“Jai Prabhu Dasharath Nandan.
Hari Har Krishna Rukmini Jeevan.”
(Meaning: Glory to Shri Krishna, who is also revered as Shri Ram, the son of Dasharath, and as the life of Rukmini.)

“Bhim Arjun ke saathi sakha.
Har lo ab Prabhu vipda ati bhayankar.”
(Meaning: Shri Krishna, the companion and friend of Bhima and Arjuna, please remove our terrible sufferings.)

Doha:
“Jai Jai Krishna Kanhaiya, vandan tihu lok.
Jo yah Chalisa padhe, haro sankat shok.”
(Meaning: Glory to Shri Krishna, who is worshipped in all three worlds. Whoever recites this Chalisa is freed from all troubles and sorrows.)

श्री कृष्ण पूजा विधि और पूजा सामग्री

पूजा सामग्री (Puja Samagri):

  1. मूर्ति या चित्र: श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र (बालगोपाल, मुरलीधर)।
  2. चौकी और वस्त्र: चौकी (पूजन स्थान) और पीला या लाल कपड़ा बिछाने के लिए।
  3. अक्षत: चावल (पूर्ण और बिना टूटे हुए)।
  4. कुंकुम और हल्दी: तिलक और पूजा के लिए।
  5. धूप और दीपक: घी का दीपक और धूप/अगरबत्ती।
  6. फूल और माला: तुलसी के पत्ते और ताजे फूल (विशेष रूप से पीले फूल)।
  7. मिष्ठान्न: माखन-मिश्री, लड्डू या अन्य मिठाई।
  8. पंचामृत: दूध, दही, शहद, गंगाजल और घी।
  9. पान-सुपारी: पान के पत्ते, सुपारी और इलायची।
  10. जलपात्र: जल के लिए एक पात्र (चांदी, तांबा या स्टील)।
  11. भोग सामग्री: फल (मौसमी फल), मेवा, और पकवान।
  12. शंख और घंटी: शंख फूंकने और घंटी बजाने के लिए।
  13. गंगाजल: मूर्ति या चित्र को स्नान कराने और शुद्धिकरण के लिए।
  14. सिंहासन: श्रीकृष्ण की मूर्ति रखने के लिए।
  15. भजन सामग्री: पूजा के समय गाने के लिए भजन या कीर्तन की किताब।

पूजा विधि (Puja Vidhi):

  1. पूजा स्थल की सफाई करें:
    पूजा के स्थान को साफ कर लें और चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं।
  2. मूर्ति या चित्र स्थापना:
    श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र को चौकी पर स्थापित करें।
  3. आचमन और शुद्धिकरण:
    हाथ में जल लेकर आचमन करें और स्वयं को शुद्ध करें। पूजा स्थल पर गंगाजल का छिड़काव करें।
  4. दीप प्रज्वलन:
    दीपक और धूप जलाकर पूजन आरंभ करें।
  5. संकल्प लें:
    हाथ में जल, अक्षत और फूल लेकर संकल्प करें कि आप श्रीकृष्ण की पूजा श्रद्धा और भक्ति से करेंगे।
  6. मूर्ति स्नान (अभिषेक):
    पंचामृत से श्रीकृष्ण का अभिषेक करें। इसके बाद गंगाजल से मूर्ति को स्नान कराएं और साफ कपड़े से पोंछ लें।
  7. वस्त्र और अलंकरण:
    श्रीकृष्ण को वस्त्र, फूलों की माला और आभूषण अर्पित करें।
  8. तिलक और पुष्प अर्पण:
    मूर्ति को चंदन, हल्दी और कुंकुम का तिलक करें। फिर फूल और तुलसी दल अर्पित करें।
  9. भोग अर्पण:
    श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री, पंचामृत, फल और मिष्ठान्न का भोग लगाएं।
  10. धूप-दीप और आरती:
    धूप और दीप से आरती करें। घंटी बजाएं और शंख फूंकें।
  11. मंत्र और भजन:
    श्रीकृष्ण चालीसा, भगवद् गीता के श्लोक, या भजन गाएं। “ओम् नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
  12. परिक्रमा और प्रार्थना:
    मूर्ति की तीन या सात बार परिक्रमा करें और भगवान से अपने मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करें।
  13. भोग वितरण:
    अंत में, अर्पित प्रसाद को सबमें बांटें और स्वयं ग्रहण करें।

विशेष टिप:

  • पूजा में तुलसी के पत्तों का विशेष महत्व है। श्रीकृष्ण को तुलसी अर्पित करना अनिवार्य माना गया है।
  • माखन-मिश्री श्रीकृष्ण का प्रिय भोग है, इसे अवश्य अर्पित करें।
  • पूजा करते समय मन को शांत रखें और पूरी भक्ति से भगवान का स्मरण करें।

जय श्रीकृष्ण